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Sunday, March 6, 2011

(3) गांव

पचास वर्ष पूर्व
होली से ईद तक
क्रिसमस से बैसाखी तक
घर खेत और खलिहान तक
हिन्दू,सिख ,ईसाई और मुसलमान तक
एक अनोखा ,अनूठा साम्य था 
भारत में अद्वितीय जीवन का ग्राम्य था .
किन्तु आज 
लोग एक दूसरों के त्यौहारों से कटते हैं 
होली और ईद पर दिल का मैल नहीं
बम फटते हैं .
लोगों को सौहार्द के बजाय
संक्रीनता के अशलील जुमले रह गए हैं 
हम सभी धर्म, संप्रदाय, जाति और उपजाति में बंट गए हैं .
अब दिलों में -
ईष्र्या की पीड़ा द्वेष के नासूर , नफरत और फिरकापरस्ती के घाव हैं 
ये हमारे वर्तमान भारत के प्रगतिशील गाँव हैं .

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