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Saturday, March 5, 2011

(2) सूना-सूना सा लगता है.

गति हो पर उत्कर्ष न हो तो, सूना-सूना लगता है
जीवन में संघर्ष न हो तो, सूना-सूना सा लगता है.
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जहाँ व्यक्ति की गुरुता को बस, पैसे से तौला जाता हो
सेवा या बलिदान, त्याग को पागलपन बोला जाता हो
निर्णय में आदेश जहाँ हो, जब भेड़ों की गति चलना हो
और विचार विमर्श न हो तो सूना सूना सा  लगता है .
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जहाँ स्वार्थ के, झूठे रिश्ते, जहाँ सिर्फ मतलब के नाते 
जहाँ पीठ पीछे निंदा हो, और सामने  सब गुण गाते 
जहाँ स्नेह सम्मान प्रदर्शन के पीछे भी कुटिल भाव हो 
स्वागत में यदि हर्ष न हो, तो सूना-सूना सा  लगता है.
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निपट अकेलेपन  में जब प्रिय चाह मिलन की मन में जागे
जब भटकन दिल को मथती हो , जब झंकृत हो मन के तागे
जब वसंत बावरा बनाये और न मन थिर हो पाता हो
तब प्रियतम का दर्श न हो तो सूना सूना सा लगता है .
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जीवन की गंभीर भंवर में कहीं किनारा न दिखता हो
विकट परिस्थिति में जब कोई कहीं सहारा न दिखता हो
उस टूटन, उस बिखरन में जब तिनका भी पर्वत दिखता हो
प्यार भरा स्पर्श न हो तो सूना सूना सा लगता है .



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