मौन रहे अब भी यदि तो फिर बढ़ते अत्याचार रहेंगे.
सहनशीलता की सीमा है आखिर कब तक भार सहेंगे .
कहीं हवाला, कहीं घोटाला, कहीं तहलका डाट काम है
किसको कौन किस तरह पकडे चोरों में तीसरा नाम है
दफ्तर, अफसर, मंत्री सब का पैसा ही बस लक्ष्य रह गया
विभ्रम, विवश, विवेकशून्य हम कब तक इनका साथ गहेंगे .
सैन्यायुध खरीद में भी अब शासन करता गोलमाल है
देश लुटेरों के हाथों में चोरों का बिछ रहा जाल है
कौन करे प्रतिवाद किसी का, चोर-चोर मौसेरे भाई
यही लुटेरे कल चोरी, रिश्वत अपना अधिकार कहेंगे
हर चुनाव में गलती अपनी दोष दूसरों को देते हैं
स्वार्थ विवश या फिर दबाववश बाहुबली को चुन लेते हैं
छूट लूट की जब दी हमने तो फिर जग से रोना कैसा
आखिर कब तक शोषित पीड़ित बेबश और लाचार रहेंगे .
जाति, धर्म की सीमाओं से देश न बाटें नेक राय है
दल की निष्ठा छोड़ चुने हम व्यक्ति यही अंतिम उपाय है
आज न चेते तो निश्चित है भावी पीढ़ी की बरबादी
युवा रक्त लेगा उबाल तो कलम छोड़ हथियार गहेंगे .
0 comments:
Post a Comment