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Editor "LAUHSTAMBH" Published form NCR.

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Wednesday, September 28, 2011

(103) कौन किसके लिए जिया

तुमने जो भी सिला दिया यारों ,
हमने शिकवा कहाँ किया यारों ?

मर तो सकता है किसी पर कोई ,
कौन किसके लिए जिया यारों ?

दो कदम साथ चले भी तो बहुत ,
कद्रदानी का शुक्रिया यारों /

जख्म देना जहाँ की फितरत है ,
जिसने जो भी दिया , लिया यारों /

अब तो रूख्सत के वक़्त माफ़ करो ,
छोड़ दो मुझको , तखलिया यारों /

कौन किसके लिए ---जिया यारों //




Monday, September 26, 2011

(102 ) कौन हूँ मैं ?

कौन हूँ मैं , जानता खुद भी नहीं, पर जानता हूँ ,
मैं जलधि के ज्वार सा, आवेग सा, आक्रोश सा हूँ /

मैं कृषक का, मैं श्रमिक का, मैं वणिक का, मैं लिपिक का ,
वृद्ध, बालक,  नारि - नर , तरुणाइयों का जोश सा हूँ  /

सूर्य का सा ताप हूँ मैं, धधकता ज्वालामुखी हूँ ,
मैं हलाहल , मैं गरल , जनवेदना का रोष सा हूँ /

मूक की आवाज हूँ मैं, आर्त की चीत्कार हूँ मैं,
जो गगन को भेद दे , उस घोष उस उद्घोष सा हूँ /

और अंतिम छोर वाले आदमी की वेदना का ,
क्रोध हूँ, आवेश हूँ, संवेदना का कोष सा हूँ  /

मैं विवादी हूँ, प्रलापक हूँ , ये हैं आरोप मुझ पर,
नाम कुछ भी दे कोई, कवि ह्रदय का आक्रोश सा हूँ /

Saturday, September 24, 2011

(101) मैं ही आधार हूँ

मैं स्रजन, मैं अगन , मैं धरा , मैं गगन,
मैं प्रकृति , मैं नियति, मैं ही सहकार हूँ /
मैं प्रभा, मैं किरन, मैं विरल, मैं सघन ,
सूर्य  की रश्मियों  का ,  मैं  साकार हूँ  /

मैं समय, मैं अवधि ,वारि मैं , मैं जलधि ,
मैं ही ,  नद - नद्य  का  लेता  आकार  हूँ /
क्रोध मैं , मैं  विनय , घ्राण मैं, मैं ह्रदय ,
पञ्च  भूतों  में ,  मैं  सृष्टि  साकार  हूँ /

मैं जगत , जीव , जड़ और चैतन्य में ,
ईर्ष्या - द्वेष   मैं   प्यार - मनुहार हूँ  /
यज्ञ मैं , विज्ञ मैं  , ज्ञान - विज्ञान मैं,
तत्त्व , दर्शन भी मैं , शब्द ओंकार हूँ /

सारे साधन मेरे , एक मैं साध्य हूँ  ,
सृष्टि साकार में,  मैं  निराकार हूँ  /
मेरा कुछ नाम दे, एक कर्ता हूँ मैं ,
मैं ही कर्तव्य हूँ , मैं ही अधिकार हूँ /

धर्म की आड़ ले , बाटते जो मुझे ,
वे गुनहगार हैं, धूर्त - मक्कार हैं/
मैं ही मंदिर हूँ, मस्जिद , शिवाला भी मैं ,
मैं गिरिजाघरों का भी आधार हूँ  /



Thursday, September 15, 2011

( 100 वीं पोस्ट ) कुछ बनना, कायर मत बनना

मेरी   १०० वीं पोस्ट 
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     ब्लॉग पर यह मेरी १००वीं प्रविष्टि है / अच्छा या बुरा , पहला शतक ! मैं अपने हर समर्थक, शुभचिंतक तथा पाठक से , अपनी अब तक की " काव्य यात्रा " पर बेबाक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करता हूँ / यदि मेरे प्रयास में कोई त्रुटियाँ हैं,तो उनसे भी अवश्य अवगत कराएं , आपका हर फैसला शिरोधार्य होगा . साभार  - एस . एन . शुक्ल
कुछ बनना, कायर मत बनना, अंतिम विजय तुम्हारी होगी/
अगर पराजय  भी हो , तो क्या ,  कल फिर से  तैयारी होगी / 

 बिना लड़े मत कभी पराजय स्वीकारो , यह ठानो मन में ,
 लड़ो !  और लड़कर हारो भी , तो  संतोष  रहेगा  मन  में , 
 ऐसी हार , हार तो होगी , लेकिन एक - दम न्यारी होगी / 
कुछ बनना, कायर मत बनना, अंतिम विजय तुम्हारी होगी/

 शत्रु प्रबल कितना भी हो , पर मरने से वह भी डरता है ,
  सीधे सींगों वाले पशु का , कौन सामना कब करता  है ,
   तूफानी  हर लहर सदा , चट्टानों से  लड़  हारी होगी /
कुछ बनना, कायर मत बनना, अंतिम विजय तुम्हारी होगी/

पीछे रह  ललकार  लगाने  वाला , युद्ध  नहीं लड़  सकता ,
जिसकी निष्ठा अविश्वस्त हो , वह नेतृत्व नहीं कर सकता,
जो खुद में  भयभीत , भला उसमें  कितनी   खुद्दारी होगी  /
कुछ बनना, कायर मत बनना, अंतिम विजय तुम्हारी होगी/













Monday, September 12, 2011

(99 ) वर्षों तक

उम्र भर साथ निभाने का था वादा कोई ,
 उसी करार में हम, जीते रहे वर्षों  तक /

तल्ख़ झोंको से लरजती हुयी चादर अपनी ,
सहेजते   भी  रहे ,  सीते रहे   वर्षों तक  /

सामने लोग मेरे , मुझसे खुद को भरते रहे ,
और  हम बहते रहे , रीते रहे   वर्षों  तक  / 

 फब्तियों  का  भी , एक दौर सहा है मैंने  ,
 ज़हर के घूँट भी , हम पीते रहे वर्षों तक /

 वे जो अकल में थे , पासंग भर नहीं मेरे-
 कभी उनसे भी , गए-बीते  रहे  वर्षों तक / 

 वक्त जो कुछ न कराये , वो समझो थोड़ा है,
  ये मान, सहते रहे , जीते  रहे वर्षों तक  /














Thursday, September 8, 2011

(98) इस अँधियारे में

रहबर के बाने में रहजन , देश दहारे में ,
आशाएं हम  खोज रहे हैं,इस अँधियारे में /

कल के बड़े हादसे में, किस घर का कौन गया ?
एक अजब सन्नाटा है, हर घर -चौबारे में /

दहशत ले , वापस लौटे थे , कल स्कूलों से ,
अब वे बच्चे पूछ रहे हैं, कल के बारे में /

सब पर बीत रही एक जैसी , फिर भी एक नहीं ,
बटे हुए कौम-ओ -मजहब के, लोग दयारे में /

शहर सभ्यता के मानक थे , अब वह बात कहाँ ,
एक नयी दुनिया बसती , इस पत्थर - गारे में /

घुटकर चीखें अन्दर की अन्दर रह जाती हैं ,
तूती की आवाज कौन सुनता नक्कारे में ?

Sunday, September 4, 2011

{97} न जाने क्यों ?

न जाने क्यों शहर ये आज ग़मज़दा , उदास है 
न जाने कौन सी , चुभी हुई दिलों में फाँस है

न जाने कौन खौफ से , हैं लोग यूँ  डरे हुए 
न जाने क्यों , ये घुचघुचे से आँख में भरे हुए

न जाने कौन सा यहाँ , कहाँ हुआ बवाल है
न जाने क्यों हर एक आँख में यहाँ सवाल है

न जाने क्या जला , कहाँ , ये गंध क्यों जली-जली
न जाने कैसी राख , उड़ रही यहाँ गली-गली

सुना है कल , सियासती हुजूम था इसी शहर
उसी हुजूम ने शहर में ढाया इस कदर कहर 

छुरे, कटार, बम चले, कहीं पे गोलियाँ चलीं 
धधकने लग गया शहर, लहू बहा गली-गली

ये क्या हुआ, ये क्यों हुआ ,किसी को कुछ पता नहीं 
किसी से पूछिए , तो बोलता है  बस ' न जाने क्यों '

न जाने क्यों ?न जाने क्यों ?न जाने क्यों ?न जाने क्यों ?