नियम परिवर्तन प्रकृति का , दिवस पीछे रात भी है /
और हर काली निशा के बाद आता प्रात भी है /
जो न भय खाते निशा से , और सहते धैर्य से तम ,
फिर समय उनके लिए , लाता प्रभामय प्रात भी है /
कष्ट मिट्टी पर लिखो , उपकार लिख डालो शिला पर ,
चूमना आकाश है तो , विजय लिख दो हर दिशा पर ,
स्वर्ण में भी दीप्ति आती , ताप का संताप सहकर ,
और तन पर झेलता वह , तीव्रतम आघात भी है /
है वही जीवन कि जिसमें , कंटकों से पूर्ण पथ हो ,
है वही जीवन कि जिसमें , प्रथम इति पश्चात अथ हो ,
चक्र जीवन का निरंतर , एक सा किसका चला है ?
विजयश्री मिलती जिसे , मिलती उसे ही मात भी है /
वही है सबसे दुखी , जिसने कभी भी दुःख न देखा ,
जो झरा वह फिर फरा भी , सृष्टि का यह अमिट लेखा ,
बाद पतझड़ कोपलों से , सँवरती फिर तरु - लताएँ ,
फिर वसंती पवन देता , उन्हें नूतन पात भी है /
नियम परिवर्तन प्रकृति का , दिवस पीछे रात भी है /
- एस.एन.शुक्ल